गुरुवाणी

श्री राजारामजी जीवन कथा ****

गायो चराई गांव री , बिन लकड़ी ले हाथ ।
पग उरबांण घेरता , तन मन सू वे तात ।
गांव धणी रे हली रहता , करता खेती धाप ।
कोई ना वांरी आदर करता , रमता आपो आप ।
रिजको पावत रावलो , करता मोजां मोज ।
भजन करता प्रभु तणा , नित प्रभातो रोज ।
एक दिवस रा बारह सोगरा , रावला सू आता ।
आधा तो आप खुद जिमता, आधा कुत्ता खाता ।
नापट जाय ठाकुर सू कहे , सुण जो बात हमारी ।
ओ मूंगे भाव रो धान बिगाड़े , धापे न मुढ़ भिखारी।
इण रो भातो आधो करदो, छः सोगरा भेजो ।
आप खाय चाहे कुत्ता जिमावे, चाहे भूखो रहिजो।
आवे जिणसूं आध , कुत्तों ने नोकें कहे ।