आंजणा चौधरी समाज प्रगति की राह पर

आज पूरे देश भर में आंजणा चौधरी समाज प्रगति की राह पर है और निरंतर फल फूल रहा है। पिछले कुछ वर्षो में शिक्षा व जागरूकता की कुछ कमी के चलते स्वाभाविक तौर पर कुछ सामाजिक बुराईयों और विशेषकर नशे की प्रकृति ने अपना राज स्थापित कर लिया और उसका परिणाम यह रहा कि शादी-ब्याह,मौसर (मृत्युभोज) व अन्य अवसरों पर अफीम का प्रचलन हो गया। चिन्ता का विषय तो इससे भी अधिक यह हो गया है कि अफीम की जगह अफीम का दूध प्रयोग में लिया जाने लगा है जो सबसे घातक व हानिकारक नशा है। आम तौर पर समाज में इस बढते अफीम व अफीम के दूध के प्रयोग के विरूद्ध तो अधिकांश लोग है लेकिन बुजुर्गो के समय से चली आ रही इस प्रथा का विरोध करने की जहमत नहीं उठ पाई थी। बल्कि बुजुर्गो के नक्शेकदम पर कुछ युवा भी चलने लग गए और इसके आदी हो गए।

लेकिन नशे का जब परिणाम भयानक रूप से सामने आने लगा, पुण्य कर्मो से मिली मानव रूपी जिन्दगी जब बर्बाद होते दिखी तो समाज के जागरूक लोगों ने (भले ही दबे स्वर से) इसके विरोध में भी आवाजे उठानी शुरू कर दी। कई स्थानों पर तो सामूहिक रूप से भी व्यसन मुक्ति के निर्णय लेकर मौसर आदि में अफीम या उसके दूध पर सख्त पाबंदी लगाने का निर्णय गत दिनों हुआ है। समाज का युवा अब जाग रहा है और इस बुराई को हर स्तर पर समाप्त करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। आज के समय की सबसे बडी मांग भी यही है कि समाज कैसे व्यसन मुक्त हो। नशाखोरी कई तरह की अन्य सामाजिक बुराईयों को भी जन्म दे देती है। नशे में पृवत हुआ व्यक्ति चेतना शून्य हो जाता है और उसका इतना गुलाम हो जाता है कि दिन की शुरूआत उसी से करनी पड़ती है। आर्थिक हानि के साथ-साथ स्वास्थ्य पर गंभीर विपरीत परिणाम पड़ता है। जिस दिन नशा करने को न मिले उस दिन तो मानो, वह जिन्दा लाश बन जाता है। शरीर के फेफडे, धमनिया, लीवर, अमाशय आदि सभी धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाते है।