देख उजडती फसल को, रोता रहा किसान [कविता] - योगेश समदर्शी
Submitted by Skahore on 1 June 2018 - 7:57amबेटा पढ लिख कर गया, बन गया वो इंसान.
देख उजडती फसल को, रोता रहा किसान.
सारी उम्र चलाया हल, हर दिन जोते खेत.
बूढा हल चालक हुआ, सूने हो गए खेत.
दो बेटे थे खेलते इस आंगन की छांव.
अब नहीं आते यहां नन्हें नन्हें पांव.
बुढिया चूल्हा फूंकती सेक रही थी घाव.
अबके छुट्टी आएंगे बच्चे उसके गांव.
बडा बनाने के लिये क्यों भेजा स्कूल.
बूढा बैठा खेत पर कोसे अपनी भूल.
खेत बेच कर शहर में ले गया बेटा धन.
बूढे बूढी का इस घर में लगता नहीं है मन.
जब शहर वाले फ्लैट में गये थे बापू राव.
हर दिन उनको वहां मिले ताजे ताजे घाव.