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देख उजडती फसल को, रोता रहा किसान [कविता] - योगेश समदर्शी

किसान ,

बेटा पढ लिख कर गया, बन गया वो इंसान.
देख उजडती फसल को, रोता रहा किसान.

सारी उम्र चलाया हल, हर दिन जोते खेत.
बूढा हल चालक हुआ, सूने हो गए खेत.

दो बेटे थे खेलते इस आंगन की छांव.
अब नहीं आते यहां नन्हें नन्हें पांव.

बुढिया चूल्हा फूंकती सेक रही थी घाव.
अबके छुट्टी आएंगे बच्चे उसके गांव.

बडा बनाने के लिये क्यों भेजा स्कूल.
बूढा बैठा खेत पर कोसे अपनी भूल.

खेत बेच कर शहर में ले गया बेटा धन.
बूढे बूढी का इस घर में लगता नहीं है मन.

जब शहर वाले फ्लैट में गये थे बापू राव.
हर दिन उनको वहां मिले ताजे ताजे घाव.

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वैश्वीकरण की प्रक्रिया से दुनिया में बढ़ रही असमानता के बीच स्विट्जरलैंड के दावोस में बीते मंगलवार से वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू हुई। इसमें दुनिया के अमीर से अमीर देशों ने हिस्सा लिया।

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परम गुरुओ के आर्शीवाद से आज आँजणा समाज ....

शिकारपुरा

समस्त जाति भाइयों को जय राजेश्वर भगवान की।

किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि- संत आध्यात्मिक जगत के दीपस्तम्भ होते है और आम जन उनसे अलौकिक प्रकाश प्राप्त कर अपने जीवन का मार्ग प्रशस्त करते है। संतों की कृपा से ही हम लोग लौकिक आनन्द के साथ साथ पारलौकिक आनन्द भी प्राप्त कर रहे है।

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